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________________ नही बन नहीं या दया जायेगा किया बाहिर लाना है। कार प्रतिपच्या दोन दवा २६४-सम्यक्त्वपराक्रम (२) है। मान लीजिए, एक वैद्य ने किसी रोगी को दवा दी। फिर भी रोग दूर न हुआ तो यही कहा जायेगा कि या तो दवा देने वाले में कोर्ट अटि है या दवा लेने वाले ने दवा का भलीभाँति भवन नहीं किया, अथवा दी हुई दवा ही ठीक नही है। इसी प्रकार प्रतिपृच्छना का फल मका-काक्षा मे निवृत्त होना है । अगर गका दूर हो गई तो समझना चाहिए कि प्रतिपृच्छना ठीक की गई है । । मात्मा महान् है। कमरहित होने में ही आत्मा परमात्मा बनेगा । इसलिए यात्मा को गकामील न बनाते हुए पूछताछ करके निगक बनना चाहिए। जिनामा करके गका का समाधान कर, लना कोई बुराई नहीं है, परन्तु, केवल कुतूहलवृत्ति से काप करके अपने आपको गकागील बनाना अन्ठा नहीं है। जिनासापूर्वक गका करना एक प्रकार से मलया हो है और कुतूहलवृत्ति में गंणय करना ठीक नही । कहा भी है संदायात्मा विनश्यति ।' अर्थात् - गगयात्मा पुगप "लो भ्रष्टम्तनो भ्रष्ट' की तरत विनाम का पात्र बनता है । शास्त्र में अनेक प्यला पर गोनम ग्वामी के लिए जायगंसए' कहा गया है अथात गौतम ग्वामी की गेंदह उ.पन्न हमा, यह बतलाया गया है। ऐसी स्थिति में ममय होना अच्छा है या बरा? इस प्रश्न या उत्तर यह है कि गका को गका केप में ही रखना तो दार है, लेकिन उसका गमावान कर लना गुण हैं । जानकारी प्राप्त करने के लिए गका करना भस्थ के लिए यावस्यका का किये बिना यधिक ज्ञान नही प्रान हा जावयक । मागका करना है।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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