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________________ बीसवां बोल-२६३ से विशेष ज्ञानी के कथन पर विश्वास रखने की आवश्यकता है । मगर धर्म के विपय मे प्राय. ऐसा होता है कि शका होने पर पूछताछ नही की जाती और हृदय में शका को स्थान दिया ज ता है। कुछ लोगो का यहा तक कहना है कि अपने सामने जो भी कुछ आवे, खा जाना चाहिए । इस प्रकार देखे-भाले विना पर की तरह किसी भी वस्तु को डकार जाना उचित नही है । खाने में कभी कोई अयोग्य वस्तु आ जाये तो कितनी अधिक हानि होने की सभावना हो सकती है ? इसी प्रकार चाहे जो बात विना सोचेविचारे मान बैठना भी अनुचित है । किसी से पूछ-ताछे विना चाहे जिसे साधु मान लेना भी हानिकर है । अगर कोई नया साधु आवे तो उससे पूछना चाहिए कि आप कौन हैं ? कहाँ से आये हैं ? आपका प्राचार क्या है ? और आपका उद्देश्य क्या है ? जैन शास्त्र प्रेरणा करते हैं कि किसी भी बात को विना विचारे नही मान लेना चाहिए बल्कि पूछताछ के पश्चात उचित प्रतीत होने पर ही मानना चाहिए । प्रतिपृच्छना का अर्थ सदा शकाशील ही बना रहना नही है, बल्कि जो गका उत्पन्न हुई हो उसका समाधान करने के लिए बार-बार प्रश्न करना चाहिए और हृदय की सका का समाधान कर लेना चाहिए । इस तरह विचारविनिमय या शास्त्रचर्चा करके हृदय की शका का समाधान कर लिया जाय तो कहा जा सकता है कि इमने प्रतिपृच्छना की है। अगर ऐसा न किया जाये तो यही कहा जायेगा कि या तो पूछने वाले के पूछने मे अथवा बताने वाले के वताने में कोई त्रुटि है या दोनो की समझ मे कोई कमी
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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