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________________ २५८-सम्यक्त्वपराक्रम (२) विशोधन होता और इससे जीव काक्षमोहनीय कर्म को छेद डालता है। व्याख्यान गुरु के सन्निकट ली हई शास्त्रवाचना के सम्बन्ध मे गुरु से बारम्बार पूछताछ करना या शास्त्रचर्चा अथवा विचारविनिमय करना प्रतिपृच्छना है । शास्त्र और गुरु का कहना है कि ली हुई शास्त्रवाचना के सम्बन्ध में पूछताछ करनी चाहिए । इस प्रकार की प्रतिपृच्छना या शास्त्रचर्चा करने से क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है -प्रतिपृच्छना करने से सूत्र, अर्थ और सूत्रार्थ की विशुद्धि होती है । जो कोई जिज्ञासु प्रतिपृच्छना करता है वह सूत्र और उसके अर्थ के विषय में थोड़ा जानक र होता ही है । अगर वह एकदम अनजान हो तो सूत्र या उसके अर्थ के सम्बन्ध में क्या चर्चा करेगा ! अत अगर कोई सूत्र के विषय मे या अर्थ के विषय मे कुछ कुछ जानकार हो तभी वह प्रतिपृच्छना कर सकता है। गुरु से बारबार उस विषय में पूछताछ करने से, वह जो थोडा-सा जानता है, उसकी विशुद्धि होती है । अर्थहीन सूत्र और सूत्रहीन अर्थ एक प्रकार से व्यर्थ । माना जाता है । सूत्र का महत्व अर्थ से है और अर्थ का महत्व सूत्र से है । सूत्र उच्चारण रूप होता है और अर्थ उस उच्चारण रूप सूत्र में रही हुई विशेष वस्तु को प्रकट करता है अर्थात् सूत्र का महत्व प्रकट करता है। सूत्र किसे कहते हैं ? इस विषय में टीकाकार कहते हैं-जिन थोड़े अक्षरो मे वहुत अर्थगाभीर्य समाया हो, उन
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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