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________________ २४४-सम्यक्त्वपराक्रम (२) लिए और अपनी मनुष्यता सिद्ध करने के लिए आपको विचारना चाहिए कि -हे प्रात्मन् ! तुझे यह मानव शरीर मिला है और ऐसे धर्मगुरुओ का सुयोग भी प्राप्त हो गया है। फिर भी अगर अपनी शक्ति को प्रकट नहीं करेगा तो कब करेगा ? इस प्रकार विचार कर स्वाध्याय द्वारा ज्ञानावरणीय कर्म नष्ट करके आत्मा का स्वरूप पहचानो और आत्मशक्ति प्रकट करो । तपस्वी मुनि श्री रघुनाथ जी महाराज फक्कड साधु थे। वह एक बार जोधपुर मे थे, तब जोधपुर के सिंघीजी ने उनकी प्रशसा मुनी आर उनके दशन करने आये । रघुनाथजी महाराज ने सिंघीजी से पूछा - आप कुछ धर्मध्यान करते हैं या नही ? सिंधीजी ने उत्तर दिया-'महाराज ! पहले बहुत धर्मध्यान किया है, उसके फलस्वरूप सिंघो सरीखे उत्तम कुल मे जन्म पाया है, पर मे सोने का कडा पहरने को मिला है, जागीर मिली है, हवेली है और अच्छे कुल की कन्याए भी प्राप्त हुई हैं । ऐसी स्थिति मे पहले किये पुण्य का फल भोगें या अब नया करने बैठे। तपस्वीजी ने उत्तर दिया-सिंधीजी, यह सब तो ठीक है कि आपने पहले जो धर्मध्यान किया है, उसका फल आप भोग रहे हैं । मगर यदि भविष्य के लिए वर्मव्यान न किया और मृत्यु के पश्चात् कुत्ते का जन्म धारण करना पड़ा तो आपको उस हवेली मे कौन घुसने देगा? सिंघीजी-महाराज! ऐमी अवस्था मे तो हवेली में कोई नही घुसने देगा?
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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