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________________ सत्तरहवाँ बोल - २३१ समझा होगा, मगर देखता हू वह दासी को कैसे नही सौपता ।' यह कहकर उदायन ने च प्रद्योत के साथ युद्ध करने का निश्चय कर लिया । अपने निश्चय के अनुसार उदायन राजा ने उज्जैन पर चढाई कर दी और उज्जैन पर विजय प्राप्त करके चप्रद्योत को कैद कर लिया । उदायन राजा विजय प्राप्त करके अपने देश की ओर लौट रहा था कि सवत्सरी पर्व निकट आने पर उसकी आराधना करने के लिए दशार्णपुरवर्तमान मन्दसौर नगर में ठहर गया । उदायन ने अपनी सेना से कहा--' कल मेरा महापर्व है । मैं उस पर्व मे आराधना करूंगा और प्राणीमात्र के प्रति मैत्रीभाव धारण करूँगा । अतएव इस बात का खयाल रखना कि कल किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुंचे ।' सेना से यह कहकर उसने अपने रसोइया को बुलाया और चडप्रद्योत की ओर संकेत करके कहा ' यद्यपि इस समय यह मेरे कब्जे मे हैं, फिर भी राजा है । अत. कल इनको इच्छा के अनुसार भोजन की व्यवस्था करना और ध्यान रखना कि इन्हे किसी प्रकार का कष्ट न होने पाए। मैं कल सवत्सरी - पर्व की आराधना करूंगा । " · चडप्रद्योत को पता था कि उदायन राजा सवत्सरी के दिन सब जीवो के प्रति मैत्रीभाव धारण करके, सबसे क्षमायाचना करते हैं और उदारभाव से क्षमादान देते हैं । उसने सोचा - बस, कल का दिन ही मेरे लिए बन्धन से मुक्त होने के लिए उपयुक्त है । इस प्रकार विचारकर चडप्रद्योत ने उदायन से कहा - ' कल मैं भी आपके साथ सवत्सरी महापर्व की आराधना करूंगा और आपके साथ ही
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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