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________________ सत्तरहवां बोल - २२३ शब्दार्थ प्रश्न - हे भगवन् ! क्षमा मांगने से जीव को क्या लाभ होता है ? F उत्तर - क्षमा मागने से चित्त में प्रसन्नता होती है और चित्त में प्रसन्नता होने से जीव जगत् के समस्त प्राणी, भूत, जीव और सत्व- इन चारो प्रकारो के जीवो मे मित्रभाव उत्पन्न कर सकता है और मित्रभाव पाकर अपनी भावना विशुद्ध करके अन्त में निर्भय बनता है । व्याख्यान ॐ सब से पहले यह विचारना चाहिए कि क्षमापणा का मतलब क्या है ? किसी के ऊपर द्वेष उत्पन्न हुआ हो, वैमनस्य हुआ हो या किसी का दिल दुखाया हो तो उस दुख आदि को दूर करने के लिए और उसके चित्त को शान्ति पहुचाने के लिए जिस क्रिया का सहारा लिया जाता है, उस क्रिया को क्षमापणा कहते हैं । क्षमा वही दे सकता है और वही माग सकता है, जिसने प्रायश्चित्त द्वारा अपना मन शान्त कर लिया हो । इस प्रकार दूसरे के मन को जिसके द्वारा शाति पहुचाई जाती है, उसी क्षमापणा के विषय मे भगवान् से प्रश्न किया गया है कि हे भगवन् 1 क्षमापणा करने से जीव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है – हे शिष्य । क्षमापणा करने से प्राणी, भूत, जीव और सत्व के प्रति मैत्रीभावना उत्पन्न होतो है । प्राण धारण करने वाला प्राणी कहलाता है । जो भूतकाल मे भी था उसे 'भूत' कहते है । जो भूतकाल में जीवित था, वर्त्तमान मे जीवित है और भविष्य मे जीवित
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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