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________________ सत्तरहवां बोल क्षमापणा प्रायश्चित्त के विषय मे विचार किया जा चुका है। यहां क्षमापणा के सम्बन्ध में विचार करना है । प्रायश्चित और क्षमापणा मे आपस में क्या सम्बन्ध है, इस प्रश्न का स्पष्टीकरण करते हुए टोकाकार कहते है कि --- जब प्राय. श्चित्त द्वारा पाप का छेदन कर डाला जाता है तव चित्त समतोल बन जाता है । चित्त की समतोल अवस्था होने पर यह विचार उत्पन्न होता है कि मैंने अमुक-अमुक का अपराध किया है और अमुक का अमुक प्रकार से दिल दुखाया है । अतएव मैं उससे क्षमायाचना करके निवर वनं । इस प्रकार विचार उत्पन्न होने से क्षमा मागने का निश्चय होता है । इसी कारण प्रायश्चित्त के पश्चात् क्षमापणा के विषय मे भगवान से प्रश्न पूछा गया है । मूलपाठ प्रश्न-खमावणयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर-खमावणवाए णं पल्हायणभावं जणयइ, पल्हायणभावमुवगए य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु मेत्तीभावमुप्पाएइ, मत्तीभावमुवगए यावि जीवे भाव विसोहि काऊण निभए भवद ॥
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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