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________________ १९८-सम्यक्त्वपराक्रम (२) सिद्धिगति को प्राप्त हुए थे । यह पहली अन्तक्रिया का स्वरूप हुआ । पहली और दूसरी अन्तक्रिया में यह अन्तर है कि दूसरी अन्तक्रिया मे तप और वेदना प्रबल होती है किन्तु दीक्षा कम होती है अर्थान् अल्प प्रवज्या से ही मोक्ष हो जाता है । गजसुकुमार मुनि ने यह अन्तक्रिया की थी। तीसरी अन्तक्रिया मे दीक्षा भी लम्बे समय तक पाली जाती है और कष्ट भी बहुत सहन करना पड़ता है, तब मोक्ष प्राप्त होता है। जैसे सनत्कुमार चक्रवर्ती को दीर्वकाल तक सयम का पालन करने के बाद मोक्ष मिला था। सनत्कुमार चक्रवर्ती की मोक्षप्राप्ति के सम्बन्ध में आचार्यों मे मतभेद है । किसी आचार्य के मत से वह मोक्ष गये हैं और किसी के मत से देवगति में गये है। चौथी अन्तक्रिया पहली के ही समान है। उसमें केवल यही अन्तर है कि चौथी अन्तक्रिया मे अल्पकाल की और अल्प कष्ट की दीक्षा से ही सिद्धि प्राप्त होती है । जैसे मरुदेवी माता को हाथी के हौदे पर बैठे-बैठे मोक्ष मिल गया था। माता मरुदेवी का जो उदाहरण दिया गया है, उसके सम्बन्ध मे यह प्रश्न उपस्थित होता है कि पहले मुडित होना आदि जो गुण बतलाये गये है, ये मरुदेवी मे कहा थे? इस प्रश्न का उत्तर टीकाकार ने यह दिया है कि यहाँ दृष्टान्त और दार्टान्तिक मे पूर्ण समानता नहीं खोजनी चाहिए । भगवान् ने उत्तराध्ययनसूत्र में जो उत्तर दिया है,
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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