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________________ . १६६-सम्यक्त्वपरीक्रम (२) व्याख्यान भगवान् ने जो उत्तर दिया है, उसके आशय पर विचार करने से पहले इस बात का विचार कर लेना आवश्यक है कि कायोत्सर्ग कर लेने पर भी प्रत्याख्यान करने की क्या आवश्यकता है ? शरीर सम्बन्धी ममत्व का त्याग करने के उद्देश्य से कायोत्सर्ग किया जाता है । अन्य जनता मे मृत्यु का जो प्रबल भय फैला है, · कायोत्सर्ग द्वारा उस पर विजय प्राप्त की जाती है। कायोत्सर्ग करने से मनुष्य " जीवियासा-मरणभयविप्पमुक्क" अर्थात् जीवन की लालसा और मरण के भय से मुक्त हो जाता है । कायोत्सर्ग से अतीतकाल के पापो की शुद्धि होती है और प्रत्याख्यान से भविष्य के पाप रुकते है। इस प्रकार कायोत्सर्ग से भूतकालीन पापो की शुद्धि होती है, परन्तु भविष्य में होने वाले पापो को रोकने के लिए प्रत्याख्यान करने की आवश्यकता है। अतएव कायोत्सर्ग करने वाले को प्रत्याख्यान अवश्य करना चाहिए । प्रत्याख्यान करने से जीव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है कि मूलगुणो और उत्तरगूणो को धारण करने के लिए प्रत्याख्यान किया जाता है । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह- यह पाच मूलगुण हैं और नवकारसी वगैरह उत्तरगुण हैं । अर्थात् साधुओ के लिए पाच महाव्रत मूलगुण है और नवकारसी आदि उत्तरगुण है। इसी प्रकार श्रावको के लिए पाच अणप्रत मूलगुण हैं और नवकारसी वगैरह उत्तरगुण है। स्थल हिंसा न करना, स्थूल असत्य न बोलना, स्थूल चोरी न करना, परस्त्रीगमन न करना और परिग्रह की मर्यादा करना, यह पाच अणुव्रत श्रावक के मूलगुण हैं और सात व्रत उत्त
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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