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________________ १६४-सम्यक्त्वपराक्रम (२) पापो की विशुद्धि होती है मगर जैमा पाप हो वैसा ही प्रायश्चित्त होना चाहिए। कपडे पर जब तक किमो प्रकार । की अगुद्धि लगी हो तब तक उसके प्रति घृणा बनी रहती ! है, मगर कपडा वाकर साफ कर लेने के पश्चात् पहना ही जाता है । इसी प्रकार अपने पापो को कायोत्सग द्वारा घो। डालने से आत्मा निपाप हो जाता है। व्रतो मे अतिचार लगने से जो पाप आत्मा' के लिए वोझरूप हो जाते हैं, कायोत्सर्ग द्वारा आत्मा उस बोझ से . निवृत्त हो जाता है । कायो-मग करने पर भी आत्मा पाप से हल्का न हो तो समझना चाहिए कि कायोत्सग मे कुछ न कुछ त्रुटि अवश्य रह गई है । दवा लेने पर भी बीमारी । न मिटे तो यही समझा जाता है कि या तो दवा मे कोई दोप है या दवा लेने वाले मे कोई त्रुटि है। इसी प्रकार । कायोत्सर्ग करने पर भी आत्मा पाप के भार से हल्का न हो तो समझना चाहिए कि आत्मा ने सम्यकप्रकार से कायोत्सर्ग नहीं किया है । कायोत्मर्ग करने से आत्मा के ऊपर लदा हुआ - भार उतर जाता है और तब आत्मा को ऐसा प्रानन्द प्राप्त होता है, जैसे बोझ उतरने पर मजदूर को आनन्द होता है । श्रीस्थानागमूत्र के चौथे स्थानक मे आत्मा के लिए चार विश्रान्तिम्थान बतलाये गये है। उनका सार इतना ही है कि जैसे सिर का भार उतर जाने से, शान्ति मिलती है उसी प्रकार आत्मा पर लदा हुआ पाप का भार कायोत्सर्ग द्वारा उत्तर जाने से आत्मा को शान्ति मिलती है । इस प्रकार आत्मा स्वस्थ बनता है और सुखरूप विचरता है । इतना ही नही, शान्त होकर आत्मा फिर प्रशस्त धर्मध्यान
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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