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________________ १६२-सम्यक्त्वपराक्रम (२) तो मेरे यावज्जीवन सथारा है। सोते समय सथारा करने की ऐसी पद्धति है । किन्तु इस प्रकार के सथारे मे भावना की प्रबलता होना आवश्यक है । ऐसा सथारा करने के पश्चात् मन सासारिक कामो मे नही लगना चाहिए। कहा जा सकता है कि सस्कार के कारण स्वप्न तो आते ही होगे | मगर स्वप्न आने पर प्रायश्चित्त लेना चाहिए और उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। अलबत्ता, जहाँ तक हो सके, सोते समय मन मे किसी भी प्रकार का सासारिक सस्कार नही रहने देना चाहिए । कायोत्सर्ग करने से जीव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है-कायोत्सर्ग करने से अतीतकाल और वर्तमानकाल के पापो के प्रायश्चित्त की विशुद्धि होती है । यहा प्रश्न किया जा सकता है कि अतीतकाल के प्रायश्चित्त की विशुद्धि तो ठीक है, पर भूतकाल की विशुद्धि में वर्तमानकाल के प्रायश्चित्त की विद्धि किस प्रकार होती है ? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए टीकाकार कहते हैं कि समीप का भूतकाल भी वर्तमानकाल ही कहा जाता है। अतीतकाल का अर्थ दूरवर्ती पिछलाकाल है और वर्तमानकाल का आशय समीपवर्तीकाल है । जैसे - दिन के चार प्रहर होते है । आप सध्यासमय प्रतिक्रमण करते है। उस समय सारा ही दिन भूतकाल है लेकिन दिन का चौथा प्रहर समीप का भूतकाल है अर्थात् आसन्नभूत है । इस आसन्नभूतकाल को हो यहा वर्तमानकाल कहा है। भगवान् ने जो उत्तर दिया है, उसके विषय में दूसरा प्रश्न यह उपस्थित होता है कि भगवान ने कहा है कि
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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