SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६-सम्यक्त्वपराक्रम (२) पुरुष जिस स्थान से स्खलित हुआ हो, उसी स्थान पर उसका फिर आ जाना प्रतिक्रमण कहलाता है । जो आत्मा स्व-स्थान का त्याग करके, प्रमाद के वश होकर परस्थान मे चला गया हो, उसे फिर स्वस्थान में लाना प्रतिक्रमण है । जैसे कोई बालक अपना घर छोडकर दूसरे के घर चला जाये तो उसे वापस अपने घर लाया जाता है । इसी प्रकार आत्मा जब अपने स्थान से, दूसरे स्थान पर चला गया हो तो उसी को प्रतिक्रमण द्वारा अपने स्थान पर लाया जाता है । घर मे से चली गई इष्ट वस्तु को फिर अपने घर लौटा लाने का प्रयत्न सारा ससार करता है। आप लोग तिजोरी मे से रुपया निकाल देते है किन्तु आपका प्रयत्न तो यही रहता है कि निकाला हुआ रुपया व्याज सहित लौटकर आये । रुपया लौटकर आयेगा, इस आशा से आप उसे छोड नही देते । जिस रुपया की आशा छोड दी जाती है, वह जूआ मे लगाया हुआ समझा जाता है । जिसमे लगाया रुपया लौटकर नही आता वह जूआ है, व्यापार नही । व्यापार तो वही माना जाता है जिसमे लगाया रुपया ब्याज के साथ वापस लौटता है । इस प्रकार सभी लोग यह चाहते है कि जो इष्ट वस्तु हमारे यहाँ से गई है, वह वापस लौट आये। सारा ससार इसी प्रयत्न मे सलग्न है। स्वस्थान से चला गया आत्मा प्रतिक्रमण द्वारा फिर स्वस्थान पर लाया जाता है। प्रतिक्रमण द्वारा आत्मा को फिर स्वस्थान पर लाने से आत्मा के भाव अपूर्व हो जाते हैं । आत्मा के भाव क्षायोपशमिक, औपशमिक और क्षायिक है। इन भावो से अलग होकर आत्मा का औदयिक भाव
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy