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________________ दसवां बोल-१२१ की प्रदक्षिणा किस लिए करते है ? वर-कन्या जव तक अग्नि की प्रदक्षिणा नहीं करते तब तक वे कुवारे समझे जाते हैं । अग्नि की प्रदक्षिणा करने के अनन्तर आर्य बाला.' प्राणो का उन्सर्ग कर सकती है पर नियम का भग नही करती। स्त्रियाँ अपनी मर्यादा का इतना ध्यान रखती हैं तो क्या पुरुपो को मर्यादा का पालन नहीं करना चाहिए ? जैसे पति-पत्नी अग्नि की प्रदक्षिणा करके एक-दूसरे के धर्म को स्वीकार करते है उसी प्रकार शिष्य भी आवतन द्वारा वीरतापूर्वक गुरु का धर्म स्वीकार करता है। गुरु का धर्म स्वीकार करने के पश्चात् वह शिष्य यदि गुरु के विरुद्ध प्रवृत्ति न करे तो ही उसका आवर्तन और वंदन सच्चा समझो । कहने का आशय यह है कि गुरु के अभिग्रह में प्रवेश करते समय दो बार मस्तक झुकाना दो आवश्यक हुए। फिर नवदीक्षित के समान नम्र हो जाना यह एक आवश्यक हुआ। तदन्तर बारह आवर्तन करना बारह आवश्यक है । इस प्रकार यहा तक पन्द्रह आवश्यक हुए । चार बार मस्तक नमाने के चार आवश्यक हुए, तीन गुप्तियो के तीन आवश्यक, दो आवश्यक प्रवेश करते समय के और एक आवश्यक निकलते समय का । इस तरह सब मिलकर पच्चीस आवश्यक होते है। तीन गुप्ति का अर्थ यह है कि मन, वचन और काय को एकाग्र करके गुरु को वदना करनी चाहिए । गुरु को चन्दना करते समय इस प्रकार विचार करना चाहिए कि अनेक जन्म-जन्मान्तर मे भटकने के बाद मुझे जो मन की प्राप्ति हुई है, उसकी सार्थकता गुरु को वन्दन करने से हो
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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