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________________ १८ । पाठवां बोल-११ प्रश्न के उत्तर में भगवान ने कहा है कि सामायिक से समभाव की प्राप्ति होती है और- समभाव से सावध योग से -निवृत्ति होती है । मन, वचन और काय के योग से जो पत्र 'होते है, वह 'सावध योग कहलाते हैं। यह सावध योग सामायिक से दूर हो जाता है। - सामायिक का फल बतलाते हुए अनुयोगद्वार 'सूत्र मै तथा अन्यत्र भी कहा गया है - जस्स सामाणियो अप्पा, सजमे नियमे तवे । ' तस्से सामाईय होई, 'इह केलिभोसिय'॥ है जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । . तस्स सामाइनं होइ, इइ केवलिभासियं ॥ इन, गाथाओ का आशय यह है कि समभाव से वर्तने विाले के ही तप-नियम-सयम आदि सफल होते हैं। समभाव । के अभाव मे तप अपैर नियम ,आदि सफल नहीं होते। तूप · करना और दूसरो को कष्ट देना, सयम लिया मगर दूसरो पर हकमत' चलाई, 'तो. यह तप और सयम समभावविहीन -है । तप-सयम की सच्ची सफलता समभाव की विद्यमानिता मे ही है। . . . - । सामायिक की अवस्था मे आक्रमणकारी पर भी क्रोध नही आना चाहिए । क्रोध न आये तो समझ लीजिए कि मैं भगवान् के कथानुसार समभाव का पालन कर रहा हैं। इसके विरुद्ध अगर क्रोध भडक उठता है तो ज्ञात्री कहते हैंअभी तुझमे सयम नही आया, क्योकि तू समभाव से दूर है । सयम तो समभावपूर्वक ही होता है। समभाव के अभाव से, सयम टिक ही नही सकेता । इस प्रकार सामायिक करते
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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