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________________ ६६-सम्यक्त्वपराक्रम (२) अधिक है ? और अगर सभी लोग पढ़ लिख जायें तो दुनिया का काम ठीक तरह चल सकेगा? नही, तो क्या पढना वुरी वात है ? दुनिया में अपढ अधिक है और अपठो द्वारा ही दुनिया का काम चलता है, ऐसा विचार करके क्या कोई पढना छोड देता है ? ससार मे गरीबो की सख्या ज्यादा है, इस विचार से क्या कोई अपने पास का पैसा फैक देता है ? रोगियो की संख्या अधिक जानकर कोई स्वय रोगी बनने की इच्छा करता है? ससार मे रोगी भले ही अधिक हो, लेकिन कोई स्वेच्छा से रोगी नही बनना चाहता । कभी रोग उत्पन्न हो जाता है तो उसे मिटाने का प्रयत्न किया जाता है । इसी प्रकार दुनिया में विषमभाव भी है। मगर विषमभाव अच्छा है या बुरा ? जैसे रोग बुरा है उसी प्रकार विषमभाव बुरा है । विषमभाव रोग के समान है और समभाव आरोग्यता के समान है । विपमभाव का रोग समभाव द्वारा ही मिटता है। जो लोग कहते हैं कि समभाव से ससार का काम नहीं चल सकता, उन्हे सोचना चाहिए कि जब वे दुधमुहे बालक थे और अपने आप खा-पी नही सकते थे, चल-फिर भी नही सकते थे, तब उनके माता-पिता ने उन्हें आत्मतुल्य न मानकर उनकी रक्षा न की होती, तो क्या आज वह जीवत होते ? इस प्रकार तुम्हारा जीवन समभाव की कृपा से ही टिका हुआ है। ऐसी दशा मे कृतघ्न होकर क्यो कहते हो कि समभाव से काम नहीं चल सकता और विषमभाव . से ही काम चल सकता है । कोई कितना ही कर क्यो न हो, उसमे भी किसी न
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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