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________________ पाठवा बोल सामायिक पिछले प्रकरण मे गर्दा का विवेचन किया गया है। गर्दा का विपय इतना गम्भीर है कि उसकी विस्तृत व्याख्या करने मे महीनो और वर्ष भी लग सकते है । मगर इतने अवकाश के अभाव मे उसे सक्षेप मे ही समाप्त किया गया है । गर्दा के विषय मे जो कुछ भी कहा गया है, उसका सार यही है कि बालक अपने माता-पिता के सामने जैसे नि सकोच भाव से सभी बाते कह देता है, उसी प्रकार गुरु आदि के समक्ष अपने समस्त पापो-दोषो को निवेदन कर देना चाहिए । यही सच्ची गर्दी है । सच्ची गर्दा करने से अभिमान पर विजय प्राप्त होती है । बारीकी से अपने दोषो का निरीक्षण करने वाला और उन्हे गुरु वगैरह के समक्ष प्रकट कर देने वाला आत्मबली ही अभिमान को जीत सकता है । इस प्रकार अहकार को जीतने वाला अपनी आत्मा का कल्याण-साधन करता है । समभाव के अभाव मे सच्ची गर्दा नही हो सकती। अतएव समभाव के विपय मे भगवान् से यह प्रश्न पूछा गया है - मूलपाठ प्रश्न-सामाइएण भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर- सामाइएण सावज्जजीगविरई जणयइ ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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