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________________ सातवाँ बोल-६१ हो ? एक बार मिल के और खादी के कपडो की तुलना करके देखो तो मालूम होगा कि दोनो मे कितना अधिक अन्तर है । यह अन्तर जान लेने के वाद अहिंसा की दृष्टि से, धर्म की दृष्टि से और आर्थिकदृष्टि से खादी अपनाने की इच्छा हुए बिना नहीं रहेगी । . गरीबो पर दया करने के लिए ही गाधीजी ने अधिक वस्त्र पहनना त्याग दिया है। उन्होने वस्त्रो को मर्यादा बाध ली है और मर्यादित वस्त्रो से ही अपना काम चलाते हैं । वस्तुत इस उष्ण देश मे अधिक वस्त्रो की आवश्यकता भी नही है । वस्त्र मुख्य रूप से लज्जा की रक्षा के लिए ही हैं। अगर इसी दृष्टि से वस्त्रो का उपयोग किया जाये तो वहत लाभ होगा। इस देश में यद्यपि थोडे ही वस्त्रो से काम चल सकता है, फिर भी यहाँ के लोग एक-दूसरे के ऊपर, कम से कम तीन वस्त्र प्राय पहनने ही हैं। तीन से कम वस्त्र पहनना फैशन के खिलाफ समझा जाता है । ठूस-ठूस कर पहने हुए वस्त्रों के कारण भले ही पसीना हो और वह भीतर ही सूखकर शरीर को हानि पहुचाए, मगर तीन से कम वस्त्र पहनना तो फैशन के विरुद्ध ठहरा। तुम्हे देखना चाहिए कि तुम्हारे गुरु किस प्रकार रहते है। हम तुम्हारे बीच मे बैठे है, इसी कारण लज्जा की रक्षा के लिए हमे वस्त्र ओढना पडता है । अगर हम जगल मे जाकर, एकान्त मे बैठे तो हमे वस्त्र की आवश्यकता ही न रहे । तुम लोग ऐसे त्यागी गुरुओ के उपासक होते हए भी चर्वी लगे वस्त्रो तक का त्याग नही कर सकते, यह कितनी अनुचित बात है ! रानी ने वीरता के आवेश मे अपनी आधी साड़ी
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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