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________________ ६०-सम्यक्त्वपराक्रम (२) रानी ने राजा से कहा- पुत्र के शव का सस्कार करने का एक उपाय है । उस उपाय से पुत्र के शव का अग्निसस्कार भी हो जायेगा और सत्य की रक्षा भी हो जायेगी । राजा के पूछने पर रानी ने उपाय बतलाया - मैने जो साडी पहन रखी है, उसमे से आधी साडी से अपनी लाज बचा लगी और आधी आपको कर के रूप मे दे देती है । आप आधी साडी लेकर पुत्र का सस्कार कीजिए । राजा ने यह उपाय स्वीकार किया। कहा - ठीक है, इससे दोनो कार्य सिद्ध किये जा सकते है। रानी इस विचार से बड़ी प्रसन्न थी कि इस उपाय से मेरे और मेरे पति के सत्य की रक्षा भी हो जायेगी और पुत्र का अग्निसस्कार भी हो जायेगा । रानी में उस समय ऐसा वीररस अाया कि वह तत्काल ही अपनी आधी साडी फाड देने को तैयार हुई। महारानी तारा तो सत्यधर्म की रक्षा के लिए अपनी आधी साडी फाड देने को तैयार है पर आप अपने धर्म की रक्षा के लिए और अहिंसा का पालन करने के लिए चर्बी वाले वस्त्र भी नही तज सकते । तुम्हे गरीब प्राणियों पर इतनी भी दया नही पाती । चर्बी वाले वस्त्र पहनने से उन्हे कितना दुख सहन करना पडता है ? मालूम हुआ है कि यत्रवादी लोग गरीब मजदूरो के हित का ध्यान नहीं रखते। अगर कुछ ध्यान देते भी है तो बस उतना ही जिससे उनके स्वार्थ मे बाधा न आये । गरीबो पर दया रखकर वे उनके हित के लिए कुछ भी नहीं करते । प्राय. यन्त्रवादी लोगो में गरीबो के प्रति दया होती ही नही । ऐसी दशा मे तुम चर्वी वाले मिल के वस्त्र पहनकर गरीबो का दु ख क्यो बढाते
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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