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चौथा बोल-२५१
- छोटे-बडे की विषमता ने ही ससार मे बडो गड बडी मचा रखी है । उदाहरणार्थ -चार वर्गों में ब्राह्मण ऊँचा माना जाता है और शूद्र नीचा समझा जाता है । इस ऊँचनीच के भेद -भाव ने भोषण विषमता उत्पन्न को है। वर्गव्यवस्या तो पहले भी थो, मगर पहले इस प्रकार का ऊँचनीच का भाव नहीं था । यह भेदभाव तो पीछे से पैदा हुआ है । ग्रन्थो मे कहा है-भगवान् ऋषभदेव ने तीन वर्ण स्थापित किये थे और चौथा वर्ण भरत राजा ने कायम किया था । गीता मे कहा है
चातुर्वयं मया सृष्ट, गुणकर्मविभागश , तस्य कर्तारमपि मा विद्धयकर्तारमव्ययम् ॥ ४-१४ ॥
अर्थात् - श्रीकृष्ण कहते हैं कि चारो वर्ण मैंने बनाये हैं । इस प्रकार वर्ण बनाने वाले भगवान् ऋषभदेव, भरत या- कृष्ण हैं । क्या इन्होने किसी को नीच बनाया होगा? नीच तो वह बनाता है जो स्वय नीच हो । क्या भगवान् ऋषभदेव, भरत या श्रीकृष्ण को नीच कहने का माहस किया जा सकता है ? कार्य की दृष्टि से वर्गों की व्यवस्था की गई थी, क्योकि वर्ग बनाये विना काम व्यवस्थित नही होता । इसी अभिप्राय से वर्ग या वर्ण की व्यवस्था की गई। है, मगर उसमे ऊँच नीच की कल्पना पीछे का विकार है।
चार वर्गों की भाति सघ मे भी साधु साध्त्री, श्रावक और श्राविका यह चार भेद किये गये हैं । इस चतुविध सघ मे से किसे बड़ा कहा जाये और किसे छोटा माना जाये ? क्या साघु ऊंच और साध्विया नोच हैं ? अथवा श्रावको का दर्जा ऊँचा और श्राविकाओ का नीचा है ?