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________________ २२८-सम्यक्त्वपराक्रम (१) भी मनुष्य को ऑक्सीजन वायु न मिले तो उसका जीवन दुभर हो जाये । ऑक्सीजन वायु मानवसमाज के लिए प्राणवायु है , इसी प्राणवायु के आधार पर मनुष्य जीवित है । मनुष्य अपने भीतर ग्रॉक्सीजन वायु खीचता है ओर उपके बदले कारबॉनिक हवा श्वास द्वारा बाहर निकालता है। अगर वह कारबॉनिक हवा ससार मे फैल जाये तो दुनिया के लोग जीवित न रहे । किन्तु वक्ष-लता आदि वनस्पति मानो मानव-समाज की रक्षा के लिए, उस कारबॉनिक वायु को अपने अन्दर खीच लेते हैं और उसके बदले ऑक्पोजन हवा देते हैं । वृक्षो को ऑक्सीजन हवा की आवश्यकता नही है। उन्हे कारबॉनिक हवा चाहिए । इस प्रकार जो ऑक्सीजन वायु मानवसमाज के लिए प्र णवायु है, वही वृक्षो के लिए विषवायु है और जो कारबॉनिक वायु मान समाज के लिए विषैली है, वह वृक्षो के लिए प्रागवायु है। अब देखना चाहिए कि मानवसमाज पर वो का कितना उपकार है ? तुम वनस्पति को तोडने-मरोडने के लिए उद्यत रहते हो, लेकिन वनस्पति का तुम्हारे ऊपर कितना महान् उपकार है ! तुम उसका महत्व नही समझते । पाश्चात्य लोग धर्म को भले ही न जानते हो, पर वे शरीरव्यवहार को भलीभाति जानते हैं और इसी कारण अपने बगलो के वाहर वृक्षारोपण करते हैं। उनकी स्त्रियाँ वृक्षो की सिंचाई का भी काम करती है । वे लोग धर्म समझकर तो यह कार्य करते नहीं है, किन्तु जीवन के लिए वृक्षो को सहधर्मी मानकर उनका आरोपण, सिंचन आदि करते हैं, उन्हे भलाभाति मालूम है कि वृक्ष हमारे जीवन को प्राणवायु देते हैं, वे हमारे प्राणरक्षक है और इस कारण वे सहधर्मी हैं ।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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