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चौथा बोल - २२५
जीवनव्यवहार सरलतापूर्वक चल सकता है । इस प्रकार अपने नैतिक जीवन का व्यवहार सरल बनाने के लिए नीतिम न् लोगो को आवश्यकता है । जो मनुष्य प्रामाणिकतापूर्वक लेन-देन करता है, भले ही वह किमी भी जाति, का हो, आपको उस पर विश्वास होगा । इसके विरुद्ध जो प्रामाणिक नहीं है, वह आपका भाई हो क्यो न हो, आप उस पर विश्वास नही करेगे। इस प्रकार व्यवहार में भी सहधर्मी की आवश्यकता है ।
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जैसे व्यवहारधर्म में पहधर्मी की आवश्यकता है, उसी प्रकार लोकोत्तरधर्म मे भी सहधर्मी की आवश्यकता रहती है । हम साधुओ को भी सहधर्मी की आवश्यकता है | अगर हमे सहधर्मी की सहायता प्राप्त न हो तो हमारा काम चलना ही कठिन हो जाये । उदाहरणार्थ- हमें श्रावकश्राविका वगैरह की सहायता मिली है तब हमारा चातुर्मास यहां (जामनगर में ) हो सका है और हम यहा रह सके है । इस प्रकार की सहायता हमे प्राप्त न होती तो कदाचित् भाद्रपद महीने मे भी हमे विहार करना पडता । भगवान् ने शास्त्र मे ऐसी आज्ञा दी है कि - हे साधुओ ! अगर तुम्हारे व्रत - सयम में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होती हो तो तुम भाद्रपद महीने मे भो उस स्थान से अन्य स्थान पर विहार कर मकते हो ।
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इस प्रकार हम लोगो के लिए भी साधर्मी की महायता की आवश्यकता रहती है और उनकी सहायता मिलने पर ही हम निर्विघ्नरूप मे अपने धर्म का पालन कर सकते है । साधु और श्रावक हमारे सहधर्मी है । साधु तो लिंग