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तीसरा बोल-२१३ मैत्रीभाव है, इस प्रकार का पाठ तो प्राय प्रतिदिन उच्चारण करते होगे, मगर कभी यह भी देखते हो कि इसका पालन कहा तक किया है ? जिसे आप अपना मित्र समझते हैं, क्या उसे दुख मे ही रहने देना चाहिए ? जो सच्चे हृदय से किसी का मित्र अपने को मानता होगा वह अपने मित्र को दू ख मे रखकर स्वय मुखी नही बनना चाहेगा । इसलिए यदि आप सब जीवो को मित्र समान समझते हैं तो दुखीजन को देखकर उसके प्रति अन्त करण मे करुणाभावना धारण करो और उसका दु.ख अपना ही मानकर उसे दूर करने का प्रयत्न करो ।
कदाचित् यह कहा जाये कि दुनिया दुखियो से भरी पडी है, ऐसी स्थिति मे किस - किस का दुख दूर किया जाय ? ऐसा कहने वाले से यही कहा जा सकता है कि तुम जितने दुखियो का दुख दूर कर सको, करो, मगर करुणाभावना तो सभी पर रखो । करुणाभावना रखने से अपनी ओर से तो तुमने उसका दुख दूर किया ही है। तुम्हारे हृदय मे करुणा होगी तो कम से कम तुम किसी को कष्ट तो न पहुचाओगे । करुणाभाव धारण करने वाला । पुरुष जिस पर करुणाभाव धारण करेगा, उसे दु.ख तो नही पहचाएगा | वह उसके प्रति असत्य का व्यवहार नही करेगा, उसकी चीज नही चुराएगा । उसकी स्त्री को बुरी दष्टि से नही देखेगा । उसके धन-वैभव पर ईर्षा नही रखेगा । तुम्हारे दिल में दया होगी तो दूसरे का दु.ख दूर करने का ही उपाय करोगे । डाक्टर सर्वप्रथम उसी रोगी की जांच करता है जो अधिक बीमार होता है । इसी प्रकार तुम उस पर करुणा करो जो ज्यादा दुखी हो । करुणा करने