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। तीसरा बोल-१९६८
अपने गहस्थ होने का बहाना करके भगवान की आज्ञा से. दूर भी हो सकते हो, मगर हम साधु तो उनकी आज्ञा, पालने के लिए ही उनके सैनिक बने हैं । कितना ही उत्सर्ग । क्यो न करना पडे, हमे तो भगवान् की आजा का पालनकरना ही चाहिए । जब युद्ध चल रहा हो तो दूसरे लोग भले ही भाग जाएं, मगर यदि सैनिक ही युद्ध से भाग गये - तो उन्हे क्या कहा जायेगा । इसी प्रकार हम साधु तो भगवान की आजा का पालन करने के लिए ही निकले हैं। जनकी आज्ञा शिरोधार्य करनी ही चाहिए ।
कहने का आशय यह है कि धर्मश्रद्धा जागत होने पर मारिक पदार्थों पर वैराग्य आ ही जाता है । जिसे वैराग्य या जाता है वह अनगारधर्म को स्वीकार करता है। और जिसने वैराग्य-पूर्वक अनगारधर्म स्वीकार किया है, वही' पुरुष अनगारधर्म का भलीभाँति पालन कर सकता है। ''
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र मे पालित 'श्रावक का वर्णन आता है। उसमे कहा है - पालित श्रावक था और जनशास्त्रों का मोना था। वह व्यापार के लिए समुद्रयात्रा भी करता था। क बार समुद्रयात्रा करता-करता पिहुंड नामक नगर में
गा। वहा पालित को बुद्धिमान और व्यापारकुशल समझ और एक गहस्थ ने अपनी कन्या के साथ विवाह कर दिया । ___ इस प्रकार विदेश मे किसी की कन्या के साथ श्रावक विवाह हो सकता है ? अगर कोई ऐसा करता है तो वह जैन कहला सकता है ? मगरं पहले के लोग आजके लोगों की भाँति सकुचित विचार के नही थे। आर्ज जाति के नाम पर निकम्मे बन्धन खडे किये गये है।