________________
। १६८-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
T
- घमंथद्धा उत्पन्न होने से हृदय मे सासारिक पदार्थों के प्रति अरुचि और विरक्ति की उत्पत्ति होती है और विरक्ति उत्पन्न होने से आगारधर्म का त्याग कर अनगारधर्म स्वीकार किया जाता है । विरक्त पुरुष सासारिक वन्धनो का त्याग कर देता है। धर्मश्रद्धा से वैराग्य होगा और वैराग्यवान् पुरुप अनगार वन जाएगा । इस प्रकार धर्मश्रद्धा का फल तो अनगारिता को स्वीकार करता है । लेकिन आजकल तो कुछ लोगो को वम का नाम तक नही 'सूहातां । ऐसी स्थिति में यह किस प्रकार कहा जा सकता है कि लोगो मे घमश्रद्धा है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि जिनमे धमथद्धा होती है उन्हें सासारिक पदार्थो के कपर वैराग्य होता है और जिन्हे वैराग्य होता है, वह 'अनगारिता स्वाकार कर लेते है। पापमे से किसो को मिट्रो के बदले सोना मिलता हो तो आप उसे लेते देर लगाएंगे? नही । इसी प्रकार जिसके अन्त करण में धर्मश्रद्धा उत्पन्न होगी और जिसे सासारिक पदार्थो पर विरक्ति हो जायेगी वह अनगारिता स्वीकार करने मे विलम्ब नही लगाएगा। वास्तव मे दीक्षा का पात्र वही है, जिसका मन ससार से विरक्त हो गया हो । जिसका मन सासारिक पदार्थो मे 'अनुरक्त है वह दीक्षा का पात्र नहीं है, ऐसा समझ लेना चाहिए ?
. अनगारधर्म स्वीकार करने के पश्चात मजा-मौज नही लूटी जाती । वरन् भगवान् की आज्ञा का पालन करना पडता है । एक समय मात्र, भी प्रमाद मत करो' ऐसी .प्राज्ञा भगवान् ने साधुग्रो को दी है । कदाचित् गृहस्थ