________________
१८६-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
मित्र ने उत्तर दिया- 'धन में सुख तो है, फिर भी राजा ऐसी शर्त मंजूर नहीं कर सकता।' वह उलटा मुझे मूर्ख बतलायेगा । वह कहेगा, कही इस भेट के खातिर पाखाने मे जाया जाता है ! मैं ऐसा करूँगा तो दुनिया मूर्ख कहेगी।
'राजा धन की भेंट पाकर के भी जिस पाखाने में बैठने के लिए तैयार नहीं होता, उसी में बिठलाने का काम मै सरलता से ही कर सकता हूं।' यह कह कर पहला मित्र स्वादिष्ट चूर्ण तैयार करके राजा के पास ले गया । राजा को उसने चूर्ण बतलाया । राजा ने चूर्ण चखा । देखा कि चूर्ण स्वादिष्ट है तो उसकी तबीयत खुश हो गई । स्वादिष्ट होने के साथ चूर्ण मे एक गुण यह भी था कि उसके खाने से दस्त जल्दी और साफ लगता था । स्वादिष्ट होने के कारण राजा ने चूर्ण खा तो लिया, मगर उसके खाने से थोडी ही देर बाद उसे शौच की हाजत हुई। राजा उठकर पाखाने मे जाने लगा । तब चूर्ण वाले मित्र ने कहा'महाराज! विराजिये, कहाँ पधारते हैं ?' राजा बोला - 'पाखाने जाना है ।' उसने उत्तर दिया 'महाराज ! पाखाना कैसा दुर्गन्ध वाला स्थान है। आप महाराज हैं । सुगधमय वातावरण मे रहने वाले हैं। फिर उस सडने वाले पाखाने मे क्यो पधारते है ?' राजा ने कहा-'तू तो महामूर्ख मालूम होता है । दुर्गन्ध के बिना कही काम भी चलता है ? शरीर का ऊपरी भाग कैसा ही क्यो न हो, मगर इसके भीतर रक्त, मास आदि जो कुछ है वह सब तो दुर्गन्ध वाला ही है । इसी दुर्गन्ध के आधार पर शरीर टिका हुआ है । यह सुनकर पहले मित्र ने कहा - 'ठीक है । जब आप