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दूसरा बोल-१५६
बोलों के सम्बन्ध मे जो कहा गया है, उसका सार यही है कि सवेग से निर्वेद उत्पन्न होता है और निर्वेद से धर्मश्रद्धा उत्पन्न होती है । अर्थात् जिम व्यक्ति मे सच्चा सवेग होता है उसमें निर्वेद अवश्य होता है और जिसमे निर्वेद होता है उसमे धर्मश्रद्धा अवश्य होती है। इस प्रकार सवेग, निर्वेद और धर्मश्रद्धा मे पारस्परिक सम्बन्ध है । आगे सम्यक्त्वपराक्रम के तीसरे बोल के विषय मे विचार किया जाता है।