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दूसरा बोल - १५५
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भगवान् का कथन है कि जब जीवन मे निर्वेद उत्पन्न होता है तब ससार मे जितने भी विषयभोग हैं, उन सभी से मन निवृत्त हो जाता है । परन्तु कोई पुरुष विषयभोगो से निवृत्त हुआ है या नही, इसकी पहचान क्या है क्या कोई ऐसा चिन्ह है, जिससे निर्वेद की पहचान की जा सके ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि जिसमे निर्वेद होता है और जो विषयभोगो से उपरत हो जाता है, वह प्रारम्भपरिग्रह से भी मुक्त हो जाता है अर्थात् वह आरम्भ - परिग्रह का भी त्याग कर देता है ।
अन्य प्राणियो को कष्ट देना आरम्भ है और पर पदार्थ के प्रति ममता होना परिग्रह है । यह आरम्भ और परिग्रह का सक्षिप्त अर्थ है | आरम्भ और परिग्रह से तभी मुक्ति मिल सकती है जब विषयभोगो से मन निवृत्त हो जाये और विषयभोगो से मन तब निवृत्त होता है जब आरम्भ-परिग्रह का त्याग कर दिया जाये | आरम्भ - परिग्रह का त्यागी ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप मोक्षमार्ग को स्वीकार करके भवभ्रमण से बच जाता है । इस प्रकार निर्वेद का पारंपरिक फल मोक्ष है और तात्कालिक फल विषयभोग से निवृत्ति है ।
अब आप अपने विषय मे विचार कीजिए कि आप अपने जीवन मे निर्वेद उत्पन्न करना चाहते हैं या नही ? आप किस उद्देश्य से यहाँ आये हैं ? किसलिए साधु की सगति करते है ? आत्मा को विषयभोगो से निवृत्त करने के लिए ही आप साधुओ की संगति करते है | साधु-सगति करने पर भी अगर आप विषयभोगो मे फँसे रहे तो यही कहना होगा कि आपने नाम मात्र के लिए ही साधुओ की