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१५४-सम्यक्त्वपराक्रम ( १ )
विपयभोगो से मन का निवृत्त होना - विषयभोगों के प्रति वैराग्य उत्पन्न होना ही निर्वेद कहलाता है; परन्तु ज्ञानीजन इसी को निर्वेद का फल भी कहते हैं । कोई-कोई फल तत्कालीन होता है और कोई परम्परा से मिलता है । यहाँ तात्कालिक फल की चर्चा चल रही है, क्योकि फल जाने बिना मन्द लोग भी किसी कार्य मे प्रवृत्ति नही करते । श्रतएव यहाँ निर्वेद का तात्कालिक फल वतलाया गया है । निर्वेद का तात्कालिक फल कामभोगो से मन का निवृत्त होना है । जब मन कामभोगो से निवृत्त हो जाये तो समना चाहिए कि हमारे अन्दर निर्वेद उत्पन्न हो गया है । 2
विद्याभ्यास करके ऊँची उपाधि प्राप्त की जाती है । यद्यपि उच्च उपाधि प्राप्त करने का उद्देश्य परम्परा से वकालत करना या डाक्टर बनना वगैरह भी हो सकता है । किन्तु वकील या डाक्टर वनना तो विद्या का पारम्परिक फल है । विद्या का तात्कालिक फल है - अविद्या का नाश होना, अज्ञान मिट जाना । अगर पढने मे श्रम किया जाये, फिर भी एक भी अक्षर पढते-लिखते न बने तो यही कहा जा सकता है कि इस दिशा मे किया गया प्रयत्न व्यर्थ गया । इसी प्रकार निर्वेद का तात्कालिक फल विषयभोगो की ओर से मन का हट जाना है । लेकिन ऊपर से वैराग्य दिखलाना और भीतर ही भीतर विषयलालसा को पुष्ट करना सच्चा निर्वेद या वैराग्य नही किन्तु ढोग है ।
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सच्चा निर्वेद या वैराग्य तभी समझना चाहिये जब विषयो पर विरक्ति हो जाये और अन्त करण में तनिक भी विपयो की लालसा न रहे । इस प्रकार निर्वेद का तात्कालिक फल कामभोगो से मन का निवृत्त होना है ।