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________________ * सम्यग्दर्शन बनाना है वैसा ही कर सकता है । इसप्रकार द्रव्य रूपसे और गुण रूपसे आत्माकी पहिचान कराई है। इसमें जो गुण है सो वह द्रव्यकी ही पहिचान कराने वाला है। -पर्याय'अन्वयके व्यतिरेकको पर्याय कहते हैं। इनमें पर्यायोंकी परिभाषा बताई है। द्रव्यके जो भेद है सो पर्याय हैं। द्रव्य तो त्रिकाल है, उस द्रव्यको क्षण २ के भेद से (क्षणवर्ती अवस्थासे) लक्षमें लेना सो पर्याय है। पर्यायका स्वभाव व्यतिरेक रूप है अर्थात् एक पर्यायके समय दूसरी पर्याय नहीं होती । गुण और द्रव्य सदा एक साथ होते है किन्तु पर्याय एकके बाद दूसरी होती है। अरिहन्त भगवानके केवलज्ञान पर्याय है तब उनके पूर्वकी अपूर्ण ज्ञान दशा नहीं होती। वस्तुके जो एक एक समयके भिन्न २ भेद हैं सो पर्याय है। कोई भी वस्तु पर्यायके बिना नहीं हो सकती। __आत्मद्रव्य स्थिर रहता है और उसकी पर्याय बदलती रहती है। द्रव्य और गुण एक रूप हैं, उनमें भेद नहीं है किन्तु पर्यायमें अनेक प्रकार से परिवर्तन होता है इसलिये पर्यायमें भेद है। पहिले द्रव्य गुण पर्यायका स्वरूप भिन्न भिन्न बताकर फिर तीनोंका अभेद द्रव्यमें समाविष्ट कर दिया है। इसप्रकार द्रव्य गुण पर्यायकी परिभाषा पूर्ण हुई। -प्रारम्भिक कर्चव्यअरिहन्त भगवानके द्रव्य गुण पर्यायको भलीभांति जान लेना ही धर्म है । अरिहन्त भगवानके द्रव्य, गुण, पर्यायको जानने वाला जीव अपने आत्माको भी जानता है। इसे जाने बिना दया, भक्ति, पूजा, तप, व्रत, ब्रह्मचर्य या शास्त्राभ्यास इत्यादि सब कुछ करने पर भी धर्म नहीं होता और मोह दूर नहीं होता। इसलिये पहिले अपने ज्ञानके द्वारा अरिहन्त भगवानके द्रव्य गुण पर्यायका निर्णय करना चाहिये, यही धर्म करने के लिए प्रारम्भिक कर्तव्य है।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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