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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला ७६ है परन्तु यह भी जान लेना चाहिये कि सोना कैसा है। सोना पीला है, भारी है, चिकना है-इस प्रकार पीलापन, भारीपन और चिकनापन यह विशेषण सोनेके लिये लागू किये गये हैं इसलिये वह पीलापन आदि सोनेका गुण है, इसीप्रकार अरिहन्तकी पहिलेकी और बादकी अवस्थामें जो स्थिर रहता है वह आत्मद्रव्य है-यह कहा है, परन्तु यह भी जान लेना चाहिये कि आत्मद्रव्य कैसा है ? आत्मा ज्ञानरूप है, दर्शनरूप है, चारित्ररूप है, इसप्रकार आत्म द्रव्यके लिये ज्ञान, दर्शन और चारित्र विशेषण लागू होते है, इसलिये ज्ञान आदिक आत्मद्रव्यके गुण है। द्रव्यकी शक्तिको गुण कहा जाता है । आत्मा चेतन द्रव्य है और चैतन्य उसका विशेपण है। परमाणुमें जो पुद्गल है सो द्रव्य है और वर्ण, गन्ध इत्यादि उसके विशेषण-गुण है । वस्तुमें कोई विशेषण तो होता ही है जैसे मिठास गुड़का विशेषण है। इसीप्रकार आत्मद्रव्यका विशेषण क्या है? अरिहन्त भगवान श्रात्म द्रव्य किस प्रकार है यह पहिले कहा जा चुका है। अरिहन्तमें किचित् मात्र भी राग नही है और परिपूर्ण ज्ञान है अर्थात् ज्ञान आत्म द्रव्यका विशेपण है। यहाँ मुख्यतासे ज्ञानकी बात कही है, इसी प्रकार दर्शन, चारित्र, वीर्य अस्तित्व इत्यादि जो अनन्त गुण है वे सब आत्माके विशेपण है। अरिहन्त आत्न द्रव्य हैं और उस आत्मामें अनन्त सहवर्ती गुण है, वैसा ही मैं भी आत्मद्रव्य हूँ और मुझमें वे सब गुण विद्यमान है। इसप्रकार जो अरिहन्तके आत्माको द्रव्य, गुण रूपमें जानता है वह अपने आत्माको भी द्रव्य, गुण रूपमें जानता है । वह स्वय समझता है कि द्रव्य, गुणके जान लेने पर अव पर्यायमें क्या करना चाहिये, और इसलिये उसके धर्म होता है। द्रव्य, गुण तो जैसे अरिहन्तके हैं वैसे ही सभी आत्माओंके सदा एक रूप है। द्रव्य, गुणमें कोई अन्तर नहीं है, अवस्थामें संसार और मोक्ष है। द्रव्य, गुणमें से पर्याय प्रगट होती है इसलिये अपने द्रव्य, गुणको पहिचान कर उस द्रव्य, गुणमें से पर्यायका जैसा आकार प्रकार स्वयं
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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