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-* सम्यग्दर्शन बताया जायगा कि द्रव्य, गुण, पर्यायको किस प्रकार जानने से मोह क्षय होता है।
[ जो जीव अरिहन्तको द्रव्य, गुण पर्यायरूपसे जानता है वह अपने आत्माको नानता है और उसका मोह अवश्य क्षय को प्राप्त होता है । अरिहन्तका स्वरूप सर्वप्रकार शुद्ध है इसलिये शुद्ध आत्म स्वरूपके प्रतिबिम्बके समान श्री अरिहन्तका आत्मा है। अरिहन्त जैसा ही इस आत्मा का शुद्ध स्वभाव स्थापित करके उसे जानने की बात कही है। यहाँ मात्र अरिहन्तकी ही बात नहीं है किन्तु अपने आत्माकी प्रतीति करके उसे जानना है, क्योंकि अरिहन्तमें और इस आत्मामें निश्चयसे कोई अंतर नहीं है । जो जीव अपने ज्ञानमें अरिहन्तका निर्णय करता है उस जीवके भावमें अरिहन्त भगवान साक्षात् विराजमान रहते हैं, उसे अरिहन्तका विरह नहीं होता। इस प्रकार अपने ज्ञानमें अरिहन्तकी यथार्थ प्रतीति करने पर अपने आत्माकी प्रतीति होती है और उसका मोह अवश्य क्षयको प्राप्त होता है। यह पहिले कहे गये कथनका सार है। अव द्रव्य, गुण, पर्यायका स्वरूप विशेष रूपसे बताते हैं, उसे जाननेके बाद अन्तरंगमें किस प्रकारकी क्रिया करने से मोह क्षयको प्राप्त होता है, यह बताते हैं। ]
जो जीव अपने पुरुषार्थके द्वारा आत्माको जानता है उस जीवका मोह अवश्य क्षयको प्राप्त होता है-ऐसा कहा है, किंतु यह नहीं कहा कि मोह कर्मका बल कम हो तो आत्माको जाननेका पुरुषार्थ प्रगट हो सकता है, क्योंकि मोहकर्म कही आत्माको पुरुपार्थ करनेसे नहीं रोकता। जय जीव अपने ज्ञानमें सच्चा पुरुषार्थ करता है तब मोह अवश्य क्षय हो जाता है। जीवका पुरुपार्थ स्वतन्त्र है, 'पहिले तू ज्ञान कर तो मोह क्षयको प्राप्त हो' इसमें उपादानसे कार्यका होना सिद्ध किया है कितु पहिले मोह क्षय हो तो तुझे आत्माका जान प्रगट हो' इसप्रकार निमित्तकी ओरसे विपरीत को नहीं लिया है, क्योंकि निमित्तको लेकर जीवमें कुछ भी नहीं होता।