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भगवान श्री कुन्दकुन्द - कहान जैन शास्त्रमाला
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जानता है उसका मोह तय हो जाता है किन्तु जो ज्ञानके द्वारा नहीं आता उसका मोह नष्ट नहीं होता ।
यहाँ यह कहा है कि जो अरिहन्तको द्रव्यसे गुणसे पर्यायसे जानता है वह अपने आत्माको जानता है और उसका मोह अवश्य क्षय हो जाता है ।
अरिहन्तको द्रव्य, गुण, पर्यायसे कैसे जानना चाहिये और मोह क्यों कर नष्ट होता है यह आगे चल कर कहा जायेगा ।
पहले कहा जा चुका है कि जो अरिहन्तको द्रव्यरूपसे, गुणरूप से और पर्यायरूपसे जानता है वह अपने आत्माको जानता है और उसका मोह अवश्य क्षयको प्राप्त होता है । अरिहन्तको द्रव्य, गुण, पर्याय रूपसे किसप्रकार जानना चाहिये और मोहका नाश कैसे होता है यह सब यहाँ कहा जायेगा ।,
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1 श्री प्रवचनसारकी गाथा ८०-८१-८२ में संपूर्ण शास्त्रका सार भरा हुआ है।' इसमें 'अनन्त तीर्थंकरोंके उपदेशका रहस्य समाविष्ट होजाता है । आचार्य प्रभुने ८२ वीं गाथामें कहा है कि ८०-८१वीं गायामें कथित विधि से ही समस्त अरिहन्त मुक्त हुये हैं । समस्त तीर्थंकर इसी उपायसे पार हुये हैं और भव्य जीवोंको इसीका उपदेश दिया है। वर्तमान भव्य जीवोंके लिये भी यही उपाय है । मोहका नाश करनेके लिये इसके अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं है ।
जिन आत्माओं को पात्र होकर अपनी योग्यताके पुरुषार्थके द्वारा स्वभावको प्राप्त करना है - और मोहका क्षय करना है उन आत्माओं को क्या करना चाहिये ? यह यहाँ बताया गया है । पहले तो अरिहन्तको द्रव्य-गुणपर्यायसे जानना चाहिये । भगवान अरिहन्तकी आत्मा कैसी थी; उनके आत्माके गुणोंकी शक्ति-सामर्थ्य कैसी थी और उनकी पूर्ण पर्यायका क्या स्वरूप है-इसके,यथार्थ भावको जो निश्चय करता है वह वास्तवमें अपने ही
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