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भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला जाननेवाले ज्ञानमें मोह-क्षयका उपाय समाविष्ट कर दिया है, जिस ज्ञानने अर्हत भगवानके द्रव्य गुण पर्यायको अपने निर्णयमें समाविष्ट किया है उस ज्ञानने भगवानसे कर्मका और विकारका अपनेमें अभाव स्वीकार किया है अर्थात् द्रव्यसे गणसे और पर्यायसे परिपूर्णताका सद्भाव निर्णयमें प्राप्त किया है। जो जानता है। इसमें जाननेवाली तो वर्तमान पर्याय है। निर्णय करनेवालेने अपनी ज्ञान पर्यायमें पूर्ण द्रव्य-गुण-पर्यायका अस्तिरूपमें निर्णय किया है और विकारका निषेध किया है ऐसा निर्णय करनेवाले की पूर्ण पर्याय किसी परके कारणसे कदापि नही हो सकती, क्योंकि उसने अरहतके समान अपने पूर्ण स्वभावका निर्णय कर लिया है। जिसने पूर्ण स्वभावका निर्णय कर लिया है उसने क्षेत्र, कर्म अथवा कालके कारण मेरी पर्याय रुक जायगी, ऐसी पुरुपार्थहीनताकी बातको उड़ा दिया है । द्रव्य-गरण-पर्यायसे पूर्ण स्वभावका निर्णय करलेनेके बाद पूर्ण पुरुषार्थ करना ही शेष रह जाता है, कहीं भी रुकनेकी बात नहीं रहती।
यह मोह क्षयके उपाय की बात है। जिसने अपने ज्ञानमें अरहंतके द्रव्य गण पर्यायको जाना है उसके ज्ञानमें केवलज्ञानका हार गुफित होगाउसकी पर्याय केवलज्ञानकी ओर की ही होगी।
जिसने अपनी पर्यायमें अर्हतके द्रव्यगुण पर्यायको जाना है उसने अपने आत्माको ही जान लिया है उसका मोह अवश्य क्षयको प्राप्त होता है, यह कितनी खूबी के साथ बात कही है। वर्तमानमें इस क्षेत्रमें क्षायिक सम्यक्व नहीं है. तथापि 'मोहक्षयको प्राप्त होता है। यह कहने में अंतरङ्गका इतना बल है कि जिसने इस बातका निर्णय किया उसे वर्तमानमें भले ही क्षायिक सम्यक्त्व न हो तथापि उसका सम्यक्त्व इतना प्रबल और अप्रतिहत है कि उसमें क्षायिकदशा प्राप्त होनेतक बीचमें कोई भंग नहीं पड़ सकता। सर्वज्ञ भगवानका आश्रय लेकर भगवान कुन्दकुन्दाचार्य देव कहते हैं कि जो जीव द्रव्य गुण पर्यायके द्वारा अरहंतके स्वरूपका निर्णय करता है वह