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________________ ५३ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला (१५) सम्यग्दर्शन प्राप्तिका उपाय जय अरहन्त प्रवचनसारकी ८० वीं गाथा पर पूज्य श्री कानजी स्वामीका प्रवचन जो वास्तव में अरहन्त को जानता है वह अपने आत्माको अवश्य जानता है __ आचार्यदेव कहते है कि-मै शुद्धोपयोगकी प्राप्तिके लिये कटिबद्ध हुआ हूं, जैसे पहलवान ( योद्धा) कमर बाँधकर लड़नेके लिये तैयार होता है उसी प्रकार मै अपने पुरुषार्थके बलसे मोह मल्लका नाश करनेके लिये कमर कसकर तैयार हुआ हूँ। मोक्षाभिलाषी जीव अपने पुरुपार्थके द्वारा मोहके नाश करनेका उपाय विचारता है। भगवानके उपदेशमें पुरुषार्थ करनेका कथन है। भगवान पुरुषार्थके द्वारा मुक्तिको प्राप्त हो चुके है और भगवानने जो उपाय किया वही उपाय बताया है, यदि जीव वह उपाय करे तो ही उसे मुक्ति हो, अर्थात् पुरुपार्थके द्वारा सत्य उपाय करनेसे ही मुक्ति होती है, अपने आप नहीं होती। __यदि कोई कहे कि "केवली भगवानने तो सब कुछ जान लिया है कि कौनसा जीव कब मुक्त होगा और कौन जीव मुक्त नहीं होगा, तो फिर भगवान पुरुपार्थ करनेकी क्यों कहते है ?" तो ऐसा कहनेवालेकी बात मिथ्या है । भगवानने तो पुरुपार्थका ही उपदेश दिया है, भगवानके केवलज्ञानका निर्णय भी पुरुषार्थके द्वारा ही होता है। जो जीव भगवानके कहे हुये मोक्षमार्गका पुरुपार्थ करता है उसे अन्य सर्व साधन स्वयं प्राप्त हो जाते है। अब ८०-८१-८२ इन तीन गाथाओंमें बहुत सरस बात आती है। जैसे माता अपने इकलौते पुत्रको हृदयका हार कहती है उसीप्रकार यह तीनों गाथायें हृदयका हार हैं । यह मोक्षकी मालाके गुफित मोती हैं, यह तीनों गाथायें तो तीन रत्न ( श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र) के सहश हैं। उनमें पहली ८० वी गाथामें मोहके क्षय करनेका उपाय बतलाते हैं:
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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