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-* सम्यग्दर्शन . भेदविज्ञानसे ही सिद्धि यह अपना शुद्ध चैतन्य स्वभाव भेदज्ञानके विना कभी कहीं कोई भी तपस्वी या शास्त्रज्ञ प्राप्त नहीं कर सके हैं। भेद ज्ञानसे ही शुद्ध चैतन्य स्वभावकी प्राप्ति होती है।
[तत्त्वज्ञान तरंगिणी ८.११ ] भेद विज्ञानसे कर्म क्षय जिसप्रकार अग्नि घासके ढेरको क्षणमात्रमें सुलगा देती है, उसी प्रकार भेद विज्ञानी महात्मा चैतन्य स्वरूपके प्रतिघातक ऐसे कर्मों के समूहको क्षणमात्रमें नष्ट कर डालते हैं। [तत्त्वज्ञान तरंगिणी ८.१२]
मोक्षका कारण-भेद विज्ञान संवर तथा निर्जरा साक्षात् अपने प्रात्माके ज्ञानसे होते हैं, और आत्मज्ञान भेदज्ञानसे होता है, इसलिये मोक्षार्थीको वह भेदज्ञान भावना करने योग्य है।
[तत्त्वज्ञान तरंगिणी ८.१४] . सम्यग्दर्शन स्वकीय शुद्ध चिद्रूपमें रुचि वह निश्वयसे सम्यग्दर्शन है-ऐसा तत्त्व ज्ञानियोंने कहा है। यह सम्यग्दर्शन कोरूपी ईंधनको सुलगानेके लिये अग्नि समान है।
[तत्त्वज्ञान तरंगिणी १२-८] सम्यक्त्व का प्रभाव
(पशु और मानव ) नरत्वेऽपि पशुयन्ते मिथ्यात्वग्रस्तचेतः स । पशुत्वेऽपि नरायन्ते सम्यक्त्वव्यक्तचेतनाः ॥
[सागर धर्मामृत-गाया ४] जिसका चित्त मिथ्यात्वसे व्याप्त है-ऐमा मिथ्यादृष्टि जीय, मनुष्यत्व होनेपर भी पशुसमान अविवेकी आचरण करता होनेमें पा समान है, और सम्यक्त्व द्वारा जिसकी चैतन्य मपचि व्या होगई है मा सम्यग्दृष्टि सीव पशुत्व होनेपर भी मनुष्य समान वियेको आचरण परता होनेसे मनुष्य है।