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________________ २६० -* सम्यग्दशन ते आतमदर्शन थकी, एम नाण निर्धांत । [योगसार-१०७] जो सिद्ध होगये हैं, भविष्यमें होंगे, और वर्तमानमें होरहे हैंवे सब निश्चयसे आत्मदर्शन (सम्यग्दर्शन ) द्वारा ही सिद्ध होते हैं ऐसा निःशंकतया जानो! श्री जिनेन्द्रदेव-कथित मुक्तिमार्ग __ सम्यग्दर्शन-सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र-इन तीन स्वरूप है; उसीसे संवर-निर्जरारूप क्रिया होती है। . [तत्त्वानुशासन गा०८, २४] सर्व दुःखोंकी परम-औषधि जो प्राणी कषायके आतापसे तप्त हैं, इन्द्रियविषयरूपी रोगसे मूर्च्छित हैं और इष्ट वियोग तथा अनिष्ट संयोगसे खेद खिन्न हैं-उन सब के लिये सम्यक्त्व परम हितकारी औषधि है। [सारसमुच्चय-३८] सम्यक्त्वी सर्वत्र सुखी सम्यग्दर्शन सहित जीवका नरकवास भी श्रेष्ठ है, परन्तु सम्यग्दर्शन रहित जीवका स्वर्गमें रहना भी शोभा नहीं देता, क्योंकि आत्मभान विना स्वर्गमें भी वह दुःखी है। जहाँ आत्मज्ञान है वहीं सच्चा सुख [सारसमुच्चय-३६] निर्वाण और परिभ्रमण जो जीव सम्यग्दर्शनसे युक्त है, उस जीवको निश्चित ही निर्वाण का संगम होता है। और मिथ्यादृष्टि जीवको सदैव संसारमें परिभ्रमण होता है। [सारसमुच्चय-४१] कौन भवदुःखको नाश करता है ? सम्यक्त्व भावकी शुद्धि द्वारा जोजीव विषयोंके संगसे रहित है और कषायोंका विजयी है, वही जीव भवभयके दुःखोंको नष्ट कर देता है। [सारसमुचय-५०]
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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