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भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला
२५६ मूढ लोगोंके जो व्रत, तप, संयम और मूल गुण हैं वे मोक्षका कारण नहीं कहलाते।
धन्य अहो भगवंत बुध, जे त्यागे पर भाव; लोकालोक प्रकाशकर, जाणे विमल स्वभाव ॥६४॥ विरला जाणे तत्त्वने, वली सांभले कोई, विरला ध्यावे तत्त्वने, विरला धारे कोई ॥६६॥
[योगसार] अहो। उन भगवान ज्ञानियोंको धन्य है कि नो परभावका त्याग करते हैं और लोकालोक प्रकाशक-ऐसे आत्माको जानते हैं।
विरले ज्ञानीजन ही तत्त्वको जानते हैं, विरले जीव ही तत्त्वका श्रवण करते हैं, विरले जीव ही तत्त्वका ध्यान करते हैं और विरले जीव ही तत्त्वको अंतरमें धारण करते हैं।
सम्यग्दृष्टि जीवने दुर्गति गमन न थाय; कदी जाय तो दोष नहि, पूर्व कर्म क्षय थाय ।
[योगसार-८८] सम्यग्दृष्टि जीव दुर्गतिमें नहीं जाते। (पूर्वबद्ध आयुके कारण) कदाचित् जायें, तथापि वह उनके सम्यक्त्वका दोप नहीं है, परन्तु उल्टा पूर्व कर्मोंका क्षय ही करते हैं।
आत्मस्वरूपे जे रमे, तजी सकल व्यवहार; सम्यग्दृष्टि नीव ते, शीघ्र करे भवपार । ।
[योगसार-41 ] जो सर्व व्यवहारको छोड़कर आत्मस्वरूपमें रमणता करते हैं वे सम्यग्दृष्टि जीव हैं और वे शीघ्र ही संसार-सागरसे पार हो जाते हैं।
जे सिद्ध्या ने सिद्धशे, सिद्ध थता भगवान