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--* सम्यग्दर्शन (४६) सम्यक्त्वकी महिमा ।
श्रावक क्या करे ? हे श्रावक ! संसारके दुःखोंका क्षय करनेके लिये परम शुद्ध सम्यक्त्वको धारण करके और उसे मेरु पर्वत समान निष्कंप रखकर उसीको ध्यानमें ध्याते रहो!
[मोक्षपाहुड-८६] सम्यक्त्वसे ही सिद्धि अधिक क्या कहा जाय ? भूतकालमें जो महात्मा सिद्ध हुए हैं और भविष्य कालमें होंगे वह सब इस सम्यक्त्वका ही माहात्म्य है-ऐसा जानो।
[मोक्षपाहुड-८८] शुद्ध सम्यग्दृष्टिको धन्य है। सिद्धि कर्ता-ऐसे सम्यक्त्वको जिसने स्वप्नमें भी मलिन नहीं किया है उस पुरुषको धन्य है, वह सुकृतार्थ है, वही वीर है, और वही पण्डित है।
[मोक्षपाहुड-८६] सम्यक्त्वके प्रतापसे पवित्रता श्री गणधर देवोंने सम्यग्दर्शन सम्पन्न चंडालको भी देवसमान कहा है। भस्ममें छुपी हुई अग्निकी चिनगारीकी भांति वह आत्मा 'चांडाल देहमें विद्यमान होने पर भी सम्यग्दर्शनके प्रतापसे वह पवित्र होगया है इससे वह देव है।
[रत्नकरण्ड श्रावकाचार २८] ____सम्यग्दृष्टि गृहस्थ भी श्रेष्ठ है
जो सम्यग्दृष्टि गृहस्थ है वह मोक्षमार्गमें स्थित है, परन्तु मिथ्यादृष्टि मुनि मोक्षमार्गी नहीं है। इसलिये मिथ्यादृष्टि मुनिकी अपेक्षा सम्यग्दृष्टि गृहस्थ भी श्रेष्ठ है।
[रलकरएड श्रायकापार ३३ ] __ जीव को कल्याणकारी कौन ? तीनकाल और तीन लोकमें भी प्राणियोंको सम्यक्त्वक समान