SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४१ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला लगना सो नयका पक्ष है। 'मै आत्मा हूँ, परसे भिन्न हूँ' इसप्रकारका विकल्प भी राग है। इस रागकी वृचिको-नयके पक्षोंको उल्लंघन करे तो सम्यग्दर्शन प्रगट हो। 'मैं बँधा हुआ हूँ अथवा मै बंध रहित मुक्त हूँ इसप्रकारकी विचार श्रेणीको उल्लंघन करके जो आत्माका अनुभव करता है सो सम्यग्दृष्टि है और वही समयसार अर्थात् शुद्धात्मा है। मै अबंध हूँ-बंध मेरा स्वरूप नहीं है इसप्रकारके भंगकी विचार श्रेणीके कार्यमें जो लगता है वह अज्ञानी है और उस भंगके विचारको उल्लंघन करके अभंग स्वरूपको स्पर्श करना [ अनुभव करना ] सो प्रथम आत्म धर्म अर्थात् सम्यग्दर्शन है । 'मै पराश्रय रहित प्रबन्ध शुद्ध हूँ ऐसे निश्चयनयके पक्षका जो विकल्प है सो राग है और उस रागमें जो अटक जाता है (रागको ही सम्यग्दर्शन मान ले किन्तु राग रहित स्वरूपका अनुभव न करे ) वह मिथ्याघष्टि है। - का भेद का विकल्प उठता तो है तथापि उससे सम्यग्दर्शन नहीं होता अनादि कालसे आत्म स्वरूपका अनुभव नहीं है, परिचय नहीं है, इसलिये आत्मानुभव करनेसे पूर्व तत्सम्बन्धी विकल्प उठे बिना नही रहते। अनादिकालसे आत्माका अनुभव नहीं है इसलिये वृत्तियोंका उफान होता है कि मै आत्मा कर्मके सम्बन्धसे युक्त हूँ अथवा कर्मके सम्बन्धसे रहित हूँ इसप्रकार दो नयोंके दो विकल्प उठते है परन्तु 'कर्मके सम्बन्धसे युक्त हूँ अथवा कर्मके सम्बन्धसे रहित हूँ अर्थात् बद्ध हूँ या अवद्ध हूँ' ऐसे दो प्रकार के भेदका भी एक स्वरूपमें कहाँ अवकाश है ? स्वरूप तो नय पक्षकी अपेक्षाओंसे परे है, एकप्रकारके स्वरूपमें दो प्रकारको अपेक्षायें नहीं हैं। मैं शुभाशुभभावसे रहित हूँ इसप्रकारके विचारमें लगना भी एक पक्ष है, इससे भी उस पार स्वरूप है, स्वरूप तो पक्षातिक्रांत है यही सम्यग्दर्शनका विषय है अर्थात् उसीके लक्ष्यसे सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, इसके अतिरिक्त सम्यग्दर्शनका दूसरा कोई उपाय नहीं है। ३१
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy