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________________ २३४ -* सम्यग्दर्शन इस जगत में नहीं है । पूर्ण ज्ञानमें छहों द्रव्य ज्ञात हुये हैं, उनसे अधिक अन्य कुछ नहीं है । कर्मोंको लेकर छह द्रव्योंकी सिद्धि कर्म पुद्गली अवस्था है, वे जीवके विकारी भावके निमित्तसे रह रहे हैं, कुछ कर्म बंध रूपमें स्थित हुआ तब उसमें अधर्मास्तिकायका निमित्त है, प्रति क्षण कर्म उदयमें आकर खिर जाते हैं, उनके खिर जाने पर जो क्षेत्रान्तर होता है उसमें उसके धर्मास्तिकायका निमित्त है, कर्मकी स्थितिके सम्बन्धमें कहा जाता है कि यह सत्तर कोटाकोढीका कर्म है अथवा अन्तरमुहूर्त का कर्म है, इसमें कालद्रव्य की अपेक्षा है, अनेक कर्म परमाणुओं के एक क्षेत्रमें रहनेमें आकाश द्रव्यकी अपेक्षा है । इसप्रकार छह द्रव्य सिद्ध हुये । द्रव्योंकी स्वतंत्रता उपरोक्त कथनसे यह सिद्ध होता है कि जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य (कर्म) दोनों बिलकुल विभिन्न वस्तु हैं, यह दोनों अपने आपमें स्वतंत्र हैं कोई एक दूसरेका कुछ भी नहीं करता । यदि जीव और कर्म एकत्रित हो जाय तो इस जगतमें छह द्रव्य ही नहीं रह सकेंगे । जीव और कर्म सदा भिन्न ही हैं । द्रव्योंका स्वभाव अनादि अनन्त स्थिर रहते हुये भी प्रतिसमय बदलने का है । समस्त द्रव्य अपनी शक्तिसे स्वतंत्रतया अनादि अनन्त स्थिर रहकर स्वयं ही अपनी पर्यायको वदलते है । जीव की पर्यायको नीव बदलते है और पुद्गलकी पर्यायको पुद्गल बदलते हैं । जीव न तो पुद्गलका कुछ करते हैं और न पुद्गल जीवका ही कुछ करते हैं । 1 उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य द्रव्यका कोई कर्ता नहीं है । यदि कोई कर्ता है तो उसने द्रव्योंको कैसे बनाया ? किसने बनाया ? वह स्वयं किसका कर्ता वना ? जगतमें छह द्रव्य अपने स्वभावसे ही हैं, उनका कोई कर्ता नहीं है। किसी भी नवीन पदार्थकी उत्पत्ति होती ही नहीं है । किसी भी प्रयोगके द्वारा नये जीवकी
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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