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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला १३१ उपादान निमित्त और कार्य कारण • सच्चे श्रुतज्ञानके अवलम्बनके बिना और श्रुतज्ञानसे ज्ञानस्वभावी आत्माका निर्णय किये बिना आत्मा अनुभवमें नहीं आता। इसमें आत्मा का अनुभव करना सो कार्य है । आत्माका निर्णय उपादान कारण है और श्रुतका अवलम्बन निमित्त है। श्रुतके अवलम्बनसे ज्ञान स्वभावका जो निर्णय किया उसका फल उस निर्णयके अनुसार आचरण अर्थात् अनुभव करना है। आत्माका निर्णय कारण है और आत्माका अनुभव कार्य है। अर्थात् जो निर्णय करता है उसे अनुभव होता ही है। अंतरंग अनुभवका उपाय अर्थात् ज्ञानकी क्रिया अब आत्माका निर्णय करनेके बाद यह बताते हैं कि उसका प्रगट अनुभव कैसे करना चाहिये। निर्णयानुसार श्रद्धाका जो आचरण सो अनुभव है। प्रगट अनुभवमें शांतिका वेदन लानेके लिये अर्थात आत्माकी प्रगट प्रसिद्धिके लिये परपदार्थकी प्रसिद्धि के कारण को छोड़ देना चाहिये । मैं ज्ञानानन्द स्वरूपी आत्मा हूँ इसप्रकार प्रथम निश्चय करनेके बाद आत्माके आनन्दका प्रगट उपभोग करनेके लिये ( वेदन-अनुभव करनेके लिये) पर पदार्थकी प्रसिद्धिके कारण जो इन्द्रिय और सनके द्वारा पर लक्ष्य में प्रवर्त: मान ज्ञान है उसे अपनी ओर उन्मुख करना चाहिये। देव गुरु शास्त्र इत्यादि पर पदार्थकी ओरका लक्ष्य तथा मनके अवलम्बनसे प्रवर्तमान बुद्धि अर्थात् मतिज्ञानको संकुचित करके-मर्यादामें लाकर अपनी ओर ले आना सो अन्तरंग अनुभवका पंथ है, सहज शीतल स्वरूप अनाकुल स्वभाव की छायामें बैठनेका प्रथम मार्ग है। . पहले आत्मा ज्ञान स्वभाव है ऐसा बराबर निश्चय करके पश्चात् प्रगट अनुभव करनेके लिये परकी ओर मुकते हुये भाव जो मति और श्रुतज्ञान हैं उन्हें स्व की ओर एकाम करना चाहिये और जो ज्ञान परमें विकल्प करके अटक जाता है उसी ज्ञानको वहॉसे हटाकर स्वभावकी ओर लाना चाहिये । मति और श्रुतज्ञानके जो भाव हैं वे तो ज्ञानमें ही रहते है,
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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