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भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला
१०७ हॉ आगई तो वह योग्य है-उसकी अल्पकालमें मुक्ति हो जायगी और यदि उसके बीचमें कोई नकार आगया तो वह समझनेमें अर्गला समान है।
__ प्रश्न -यदि अच्छा सत्समागम हो तो उसका असर होता है या नहीं।
उत्तरः-विल्कुल नहीं, किसी का असर परके ऊपर हो ही नहीं सकता । सत्समागम भी पर है । परकी छाप तीन काल और तीन लोकमें अपने ऊपर नहीं पड़ सकती।
अहो ! यह परम सत्य दुर्लभ है। सच्ची समझके लिये सर्व प्रथम सत् का हकार आना चाहिये।
मुख्यगति दो है-एक निगोद और दूसरी सिद्ध । यदि सत्का इनकार कर दिया गया तो कदाचित् एकाध अन्य भव लेकर भी बादमें निगोद में ही जाता है । सत्के विरोध का फल निगोद ही है।
और यदि एकबार भी अन्तरसे सत्का हकार आगया तो उसकी मुक्ति निश्चित है। हकार का फल सिद्ध और नकार का फल निगोद है।
यह जो कहा गया है सो त्रिकाल परम सत्य है। तीन काल और तीन लोकमें यदि सत् चाहिये हो तो जगत को यह मानना ही पड़ेगा। सत्में परिवर्तन नहीं होता, सत् को समझने के लिये तुझे ही बदलना होगा । सिद्ध होने के लिये सिद्ध स्वरूप का हकार होना चाहिये। 000000000000000000000059
"धर्मका मूल सम्यग्दर्शन है।”
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दसण मूलो धम्मो
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