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________________ - पार्श्वकुमारा दिसे तपस्वी सिद्धिबळे जो जगास भुलवी दंभनाश प्रभु करो, कसा तम उरेल रवि देखता ॥ ७॥ पार्श्वनाथ परि होय विचारी कशास नृपपद सुख न मंदिरी सत्य ज्ञानावीण मानवा-नच जीवित सफलता ॥८॥ माय पित्या नम्रत्वे बोधुन निघे तपाला नृपाळ नंदन दुःखित नगरी-दिशा, कापतो दुःखाने तरूलता ॥९॥ मति श्रुत अवधि मनःपर्यव प्राप्त कुमारा होती अभिनव मनःज्योत पार्श्वनाथ उजळी, तनु तेजाची लता ॥१०॥ सत्य अहिंसा अस्तेयादिक दिव्य व्रते वोधी भवतारक परमात्मा आत्माच, जगाते तीर्थंकर बोधिता ॥११॥ सत्य ध्वज फडकवीत गगनी येई सम्मेत शिखर स्थानी निमग्न होउनि निर्गुण ध्यानी, पावे चिरशांतता ॥ १२ ॥ पार्श्व प्रभूची असंख्य स्थाने अमोल कीर्ती, अपार कवने यशडिडिम कुंभोजगिरीवर, ये श्रवणी गर्जता ॥ १३ ॥ त्याच ध्वनींचे सूर येउनी अपितसे काव्यांजलि चरणी सत्य शांतिचा अंत करणी असो झरा वाहता ॥ १४ ॥ वसत पचमी स १९५६ -सुधांशु औदुवर-जिल्हा सागली धो कुभोजगिरी शताब्दि महोत्सव ) [ २०५
SR No.010457
Book TitleKumbhojgiri Jain Shwetambar Tirth Shatabdi Mahotsava Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKubhojgiri Tirth Committee Kolhapur
PublisherKumbhojgiri Tirth Committee Kolhapur
Publication Year1970
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size3 MB
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