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नेमाय पू आ विजय लब्धिसूरीश्वरजी महाराजनी बने पू आ विजय सिद्धिमूरीश्वरजी महाराजानी उपकारनी अमी छाट विशेष प्रकारे मध उपर सतन थई रही छे
जंमाथी पू आ श्रीमद् विजयलब्धिमुरीस्वर म. ना. समुदायमां पू आ विजयभुवनतिलकसूरीश्वर म श्री ए प्रथम संयम ग्रही, एक ज्योतमाथी अनेक सयन वीरो प्रगटाव्या. जेमा बाल, युवक आदि भाईओ सयमी बनी रत्नत्रयीनी साधना करी रह्या छे अने पू आ श्रीमद् विजयमिद्धिमूरीश्वरजी महाराजना आज्ञावर्ती, प्रवर्तीनी, विदुषी साध्वी हीरश्रीए सयम स्वीकारी स्वनिष्कलंक चारित्र्यना पुण्यas अनेक बालब्रह्मचारिणी कुमारिका आदि
भगिनीओने सयम दान करी, मुक्ति पथनी विहारी बनावी छे तेओ अनेक प्रांतोमा विचरीने शासननी सुदर प्रभावना प्रसारी रह्या छे
आ सयमधाम गाममा अजनशलाका प्रतिष्ठा आदि धार्मिक अनुष्ठान करावनारी धर्मप्रेमी भाईओनी पण त्रण चार मडळी छे. जेओ निःस्वार्थ भावे पोताना समय अने शरीरने गणकार्याशिवाय, सर्व स्थळे जईने पण प्रभु भक्तिनो लाभ सघोने आपी रह्या छे
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आ सर्व यश, प्रताप के प्रभाव जो कोई होय तो प्रगट प्रभावी छाणी नगर भुषण श्री विमल पार्श्वजिननो छे
ते परमपावन अगरण श्री विमल पार्श्व जिनने अनत वदनावली हो
• नमस्कार मंत्रनो जाप एक बाजु इष्टनु स्मरण चितन अने भावन करावे छे अने बीजी वाजु नित्यनूतन अर्थनी भावना जगाडे छे. तेथी ते मन्त्रने मात्र अन्न, जल अने पवन तुल्य ज नहि किन्तु पारसमणि अने चितामणि कल्पवृक्ष अने कामकुम करता पण वधारे मूल्यवान मान्यो छे
विनय, भक्ति, श्रद्धा, रुचि, वार्द्रता, निरभिमानता विगेरे नमस्कार भाव ना ज safarer fafe शो छे तेथी नमस्कार - भव एज धर्म मूल द्वार, पीठ, निधान बाधार बने भाजन हे अमूर्त अने मूर्त बच्चे एक मात्र सेनु के मधि हो तो नमस्कार
[ श्री कुमोजगिरी शताब्दि महोत्मव