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तीर्थनी महत्ता
ले प. पू पंन्यासप्रवर रंजनविजयजी गणिवर
अनत उपकारी ज्ञानी पुरुषोले शास्त्रोमा सिद्धोना धाम रूप १०८ नामथी अलकृत श्री तीर्थनो महिमा अपरपार गायो छ कारणके शत्रुजय महातीर्थ सौराष्ट्रनी पुनीत भूमिमा अनत दु खयी भरपूर, भयकर, ससारसमुद्रमा तीर्थ आवेल छे ए शाश्वत गिरीना एकविश नामा विना तारणहार एफपण साधन नयी ससाररूपी पण गणाय छे जेनी शीतल छायामा अनक समुद्रयी जे पार उतारे तेज वास्तविक तीर्थ मुमुक्षुओ स्वकल्याण माध्य करे छ गणाय छे तीर्थना प्रकार बे (१) जगम तीर्थ
तेम आबूजी, अष्टापदजी, समेतशिखरजी, (२) स्थावर तीर्थ
अजारा पार्श्वनाथ, तालध्वज (तलाजा), नवसाधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविका रूप खडा पार्श्वनाथजी, केसरियाजी तारगाजी, श्री चतुर्विध सघ जगम-तरीके गणाय छे, के जेनी शखेश्वर पार्श्वनाथजी, आदि अशाश्वत ताथा स्थापना अनत ज्ञानी वीतराग भगवत श्री तीर्थ- पण आजे भारतभमिना भव्य जनोने मोभना कर परमात्माओ पोताना केवळज्ञाननी प्राप्ति परम प्रेरणा अर्की रह्या छे बाद तरतज अवश्य करे छे तेज तीर्थनी साची महत्तानु प्रमाणपत्र छे तीर्थनी विद्यमान दशामाज एटलेज भावुक आत्माओओं आत्मशान्ति-अर्थ मोक्ष मार्गनी आराधना थाय छे तीर्थना विच्छेद अवश्य तीर्थयात्रा करवी जोइए जे माटे पर्युषणावाद मोक्ष मार्गनी आराधना लगभग बधज थई
ष्टान्हिका व्याख्यानमा व्याख्यानकार सूरिपुगव जाय छे जगम तीर्थनी जेम स्थावर तीर्थ पण आचार्य भगवत श्रीमद्विजय लक्ष्मी सूरिजी महा मोक्ष साधनामा उपयोगी बने छ
राजे वर्षमा अवश्य करवा योग्य अग्यार कर्तव्य
पैकी तीर्थयात्रा कर्तव्यनी खास गणना बतावी स्थावर तीर्थोना पण बे प्रकार-एक शाश्वत तीर्थ, बीजु अशाश्वत तीर्थ
छे एटले वर्षमा एकवार तो अवश्य तीर्थयात्रा
करवी जोइ तीर्थयात्रामा अर्हद्भगवतोनी एक जबू-द्वीप, एक घातकी खड अने अर्ध भक्ति, गुरुदेवोनु वैयावच्च, सुपात्रे-दान, ब्रह्म पुष्करावर्त-द्वीप मळी अढी द्वीपमा पाच भरत चर्यन सेवन, तप, सार्मिक-भक्ति, मसार क्षेत्र, पाच महाविदेह क्षेत्र अने पाच ऐरावत- प्रवृत्तिनो-त्याग, सम्यग्दर्शननी प्राप्ति निर्मलता, क्षेत्र ए पदर कर्मभूमि तरीके गणाय छे अर्थात् स्थिरता आदि अमूल्य लाभोनी प्राप्नि थाय ? धर्म पण ए पंदर क्षेत्रोमाज होय छे ए पदर शुक राजाए तीर्थ भक्ति द्वारा राज्यप्राप्ति अन क्षेत्रमाथी फक्त जवद्वीपना भरत क्षेत्रमाज अनत अते कर्मथी भक्ति मेळवी लीधी अने महान्
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[ श्री कुंभोजगिरी शताब्दि महोत्सव