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(७०) वो कभी नहीं खता खावे ॥ गुरुजी॥ २॥ खोल चश्म तुम अपने देखो। माया जालसे मतना बेहको॥ आगे तुमको पूछे लेखो। बडे २ घमन्डी घबरावे ॥ गुरुजी॥३॥ हकताला ने जो हुकम दियाथा । तुमने भी कुछ कौल कियाथा । अबक्या माफी मांग लियाथा । कियामतको फिर पस्तावे ॥ गुरुजी ॥४॥ सब जीवों की रक्षा करना। सच्ची राहपर पांव जो भरना । बदों की संगत कभी मत करना। जुल्मियोका जुल्म हटावे ॥ गुरुजी ॥ ५ ॥ यह दुनिया है हाटका मेला। कौन तुमारे संग चलेला ॥