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(६८) अपने मनको वस करलीनो । तुरंग चडयो ज्यों
स्वार ।। अरे ॥५॥ हमको चाह है एकही उनकी। जो वक्से दातार ॥ कहेहीरालाल ध्यानलगायोज्योंचरखाकोतार॥अरेंद
॥ पद-वैरागी के वाक्य ॥ राग-धन्नाश्री॥ अब हम आये समज के द्वार । सत्गुरु ज्ञान ध्यान
समजायो॥ ताते भये अणगार ॥ अब हम आये ॥ टेर ।। भर्मकी टाटी भश्मकी बाटी। आककी टटियानिसारा। ऐसे संसारभयो भर्मनामे।नाकोइ पायापार।।अब॥१॥ नट्टे खट्टे होवे जो हट्टे । उनने रचीहै जार ॥ डालनफन्दऔरनको डोलाभरियाकपटभन्डार॥अब २ मन मतवाला कर्मका जाला । दूर किया जंजार॥ जोगुरूज्ञानीहैनिर्भिमानी।तारणतरणअणगा।अव३