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(६३) मिलन-डोलते मायामें ज्यों वग मीन॥ पण्डित ॥१॥ चंद रोज चलने के दरम्यान। गुजरी वक्तपर घर ध्यान॥ कगे गुण अवगुणकी पहिचान । घमन्ड क्यों रखते
हो इन्सान ॥ दोहा-क्यों जानेहो वैरानको । सविल वडाहे दूर ॥
अन्धे हो क्यों गिरो कृपमें । जो दरियाका पूर ।। मिलत-क्यों तुम करतेहो गमगीन । पण्डित।।२।। साधूला पन्थ कठिण आचार । खोजा क्या उठाये
तलवार ॥ गधेने उटे न गजका भार । क क्या कर गजका कार॥ दोहा-माया जाल के बीच में । फसे दोलन परिवार।।
जया बाज अशक हकमे । यहले म अणगार !! मिलन-छोलता लोभ माने हो लीन ॥ पनि ॥३॥ चगेअब ध्यान मदामहीवागतोड नब कमांकी जंजीर। रमको युवद दिल पिजीगकभी नहीं होते हेंदिलगी।