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देखत सुन्दर लागत सबको । आते जाते संसार || मिली ॥ १ ॥ इस नगरी में बसते केइ | चोर ढोर साहूकार || कइ चतुर और मूर्ख के | केइ गाफिल होशियार ॥ मिली ॥ २ ॥ जो चाहे सो माल भरा है । लेना कर विचार || खाली रहेगा फिर पस्तावे |
गुरु कहे वारम्वार || मिली ॥ ३ ॥
माल कमाया जो सुख पाया । भर्या अखूट भंडार ॥ इस काया से करो तपस्या ।
जन्म मरण दो टार || मिली ॥ ४ ॥
वडे २ पारी आये । लिया लाभ खुद लार ॥ कर्ज चुका कर गये मोक्षमें ।
जहां मौज करत नरनार || मिली ॥ ५ ॥ केइ कलंदर ऐसे आये | नहीं समजे वैपार ॥