SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५५ ) देखत सुन्दर लागत सबको । आते जाते संसार || मिली ॥ १ ॥ इस नगरी में बसते केइ | चोर ढोर साहूकार || कइ चतुर और मूर्ख के | केइ गाफिल होशियार ॥ मिली ॥ २ ॥ जो चाहे सो माल भरा है । लेना कर विचार || खाली रहेगा फिर पस्तावे | गुरु कहे वारम्वार || मिली ॥ ३ ॥ माल कमाया जो सुख पाया । भर्या अखूट भंडार ॥ इस काया से करो तपस्या । जन्म मरण दो टार || मिली ॥ ४ ॥ वडे २ पारी आये । लिया लाभ खुद लार ॥ कर्ज चुका कर गये मोक्षमें । जहां मौज करत नरनार || मिली ॥ ५ ॥ केइ कलंदर ऐसे आये | नहीं समजे वैपार ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy