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(५१) दया धर्म सती संत प्रीति मांडरे जिया ॥ स ॥१॥ जो सात व्यश्न संग रंग त्यागरे जिया। ज्ञान ध्यान दया दान पंथ लागरे जिया ।। स ॥२॥ चहाय जीववो सभी जीवा दया पालरे जिया। जिनराजके हुकममें तूं चालरे जिया ॥ स ॥ ३ ॥ यह काम क्रोध लोभ चोर मार रे जिया । कर त्याग यो संसार है असार रे जिया ॥ स॥४॥ यह आजकाल कालआज मति कर रे जिया। दम दार वेडापार अव धररे जिया ॥ स ॥ ५॥ जो अवल अमर अविकार हे स्थान रेजिया ॥ हीरालालको हरवक्त वहां सुख मान रे जिया।स॥६॥ उनीससे गुन्नसटका चौमास रे जिया।। जीवागंजमें जैनधर्मका प्रकाश रे जिया ।। स ॥७॥
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